Saturday 15 September, 2007

ज़िंदगी से बढ़ कर


ज़िंदगी में ज़िंदगी से बढ़ कर कुछ नहीं

ज़िंदगी तेरे सिवा और कुछ नहीं



तू ना मिले तो मै से मोहब्बत कर लूं

मगर ये जाम तेरी आँखों के सिवा कुछ नहीं



तुझ बिन जीने की कोशिश भी कैसे करूं

ये साँसे तेरी खुशबु के सिवा कुछ नहीं



मरने की ख्वाइश है तेरे आगोश मे छुप कर

कहीं और जाये जान, तो ये मरने के सिवा कुछ नहीं

(Genuinely Uttam’s)

8 comments:

Anonymous said...

Subhan Allah..............

Uttam Ji,

Apki in Last ki 2 Lines Ne Humme Ghayal Kar Diya,............

Shabd kam padd gayee hai isske liyee.........


मरने की ख्वाइश है तेरे आगोश मे छुप कर

कहीं और जाये जान, तो ये मरने के सिवा कुछ नहीं

Raj said...
This comment has been removed by the author.
Raj said...

Uttam ji
Bada darad hai aapki lekhni mai. Aur use abhi kahan chhupa rakha hai?
Dekho:
छुप गये वो जाकर कहीं शायद हमें सताने को,
लेकिन हम उनकी याद् में भूल गये जमाने को,
कोई उन्हे जाकर ये बता दे कि,
तरसते हैं हम उनकी एक झलक पाने को.

"प्रियराज"

Vinayak Yaligar said...

excellent anna keep it up

Unknown said...

kuch aur bhi kehna chahti hai
yeh nacheez......

जिन्दगी है नादान इस लिये चुप हूं,
दर्द ही दर्द सुबह शाम इस लिये चुप हूं,
कह ना दूं इस ज़माने से दस्तां अपनी,
उसमे आयेगा तेरा नाम इस लिये चुप हूं ।

Manoj said...

A surreal image and poetic romance

Manoj said...

It's painful

Manoj said...

It's painful