Thursday 3 May, 2007

क्या मैं भुला पाया हूँ ?


उनको भूला हूँ मैं या मुझे कभी कभी ऐसा लगता है ?
यह सवाल जब दिल से करता हूँ ..तो फिर वही दर्द सा जगता है ॥

आंखें बंद करता हूँ किसी और के सपने देखने के लिए
मगर फिर उनही की निगाहों का सुरूर छाता है ॥
निकालता हूँ किसी के हुस्न की तलाश में
देखता हूँ जिस किसी को , कुछ कम सा लगता है ॥

किसी की ग़ज़ल सुनी , किसी ने मोहब्बत का दर्द बयाँ किया
तो क्यों सब मेरी दास्तान सा लगता है
जब छाती हैं घटायें काली कजरारी सी ..
मुझे उनके जुल्फ का साया नज़र आता है ॥

किसी और को दिल देने कि नाकाम कोशिशें करता रहता हूँ
मेरे मुस्कुराते होंटों के पीछे , दर्द सा रहता है ॥
नही भूला हूँ मैं उनको बस यूं ही मुझे कभी कभी ऐसा लगता है ..


(genuinely uttams)

1 comment:

Anonymous said...

Gazab Ki Lines Hai Yeh Uttam Ji....
Koi Jawab Nahi Hai Inka....

किसी की ग़ज़ल सुनी , किसी ने मोहब्बत का दर्द बयाँ किया
तो क्यों सब मेरी दास्तान सा लगता है
जब छाती हैं घटायें काली कजरारी सी ..
मुझे उनके जुल्फ का साया नज़र आता है ॥

Nacheez's ..........

जब से दर्द से रिश्ता बना है, छाया है एक जुनून ।

इस नयी रिश्तेदारी ने दिया है एक अजीब सा सूकून ।

अब खुशियों का इंतजार करके समय नहीं गँवाएंगे,

दर्दों के साथ ही खुशी से जिंदगी बिताएंगे ।